18 July, 2009

५० से ५२ तक...... लेकिन कोई फर्क नही...!

गोरखपुर रेलवे स्टेशन

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन

कुछ
और कहने से पहले मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की मैं तो क्षेत्रवादी हूँ और ही पूर्वाग्रह की भावना से ग्रस्त... वस्तुतः बात ही कुछ ऐसी है की अपने जन्म स्थान और निवास स्थल की उपेछा से किसी भी सामान्य संवेदनशील व्यक्ति की भावनायें जाग सकती हैं|
मैं बात कर रहा हूँ इस वर्ष पेश किए गए रेल बजट की वास्तव में इसमे " दीदी " ने काफी कारीगरी और जुगाड़ किया और इसको मैंने ही क्या सारे देश ने बहुत ही सराहा चाहे युवा ट्रेन हो , नॉन स्टाप ट्रेन हो , महिलाओं के लिए स्पेशल मेमो ट्रेन हो, विभिन्न वर्गों के लिए मुफ्त पास की सुविधा हो , फ्रेट कोरिडोर की घोषणा हो , विश्व स्तरीय तथा मॉडल स्टेशन की स्थापना की घोषणा हो सब कुछ सराहनीय रहालेकिन एक बात जो मुझे संवेदित कर गई वह थी विश्व स्तरीय सुविधा की श्रेणियों से गोरखपुर तथा पुरानी दिल्ली जैसे स्टेशनों का नाम नदारद होना | मुझे लगा की बजट बाद के प्रस्तावों में माननीया ५० की संख्या को ५२ तक पंहुचा देंगी और हुआ भी वास्तव में कुछ ऐसा ही परन्तु ये वो दो नाम नही थे जिन की कल्पना मैंने की थी
आज भारत में १६ रेलवे जोन हैं जिनके मुख्यालय देश के १३ शहरों में हैं परन्तु सन् १९५२ में जब देश के शहरो में रेलवे जोन के मुख्यालय बने थे तब गोरखपुर उनमे से एक थायानी प्रथम चार में से एक और आज नाथ नगरी और पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय को अन्तिम ५२ में भी कोई जगह नहीं।
देश का दिल पूरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन जो दुनिया के सबसे चर्चित बाज़ार चांदनी चौक के मुहाने पर स्थित है| देश की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, सामरिक मजहबी शान की इमारतों लाल किला, जामा मस्जिद , शीश महल साहब, झूले लाल जी आदि से क्यों घिरा हो लेकिन उसकी बेहतरी के लिए कुछ नही सोचा गया आख़िर इनसे अधिक ख्याति लब्ध, विश्व स्तरीय इमारते कहाँ होंगी आख़िर नईदिल्ली को पुरानी दिल्ली के विकल्प के तौर पर ही बनाया गया था और आज हम मूल के ही महत्व को भूल गए, शायद ये हमारी संस्कृति नहीं की जिन्होंने हमे स्थापित किया आज उनकी लाचारी पर हम उन्हें उनके हाल पर आंसू बहाने दे

3 comments:

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

यही तो समस्या है आज की राजनीति का......... जिनका मतलब सिर्फ वोट बैंक मजबूत करना होता है......... वो भी सस्ती लोकप्रियता के आधार पर ताकि इससे तत्कालीन सफलता हासिल की जा सकी..........

कोई दीवाना कहता है said...

jnab achha research work h,

agr east up pr dgyan dia gya hota to vo bhi kam nhota, ydi 3-4 dsak phle ki bat le to hm jan payenge ki hmari isthiti itni khrab nhi thi

Unknown said...

hi... satya i really dlighted that u are thinking about these things with addministrative temperament.
these are some genuine problem with our system,which laid down such kind of crisis,but do't neglect that this is our society which havebeen
proceeded such local and regionl politics,then i think the basic requirement is to provoke the idea that we are first an indian, so that be happy that if somewhere nation is developing means we are developing.
proud to be indian