सपना था यूँ पलकों पर
जैसे शबनम की बूँदे
हुआ सबेरा तो भ्रम टूटा
जैसे शबनम की बूँदे
दिन की घोर तपिश में पिघले
जैसे शबनम की बूँदे
हुआ सबेरा तो भ्रम टूटा
जैसे शबनम की बूँदे
दिन की घोर तपिश में पिघले
जैसे शबनम की बूँदे
आंखों से वो झर-झर जाए
जैसे शबनम की बूँदे
मन को वो व्याकुल कर जाए
जैसे शबनम की बूँदे
शाम को आख़िर मिली ताजगी
जैसे हों शबनम की बूँदें
आख़िर फिर से रात ये आई
नई उमंगें सपने लायी
फिर से सपना है पलकों पर
जैसे शबनम की बूँदें.!!
6 comments:
bhut bdia
Nice satya , i like this poem .
lovely
अच्छी लिखी गई है ये कविता....
सुबह से रात तक के समय ने इसके तारतम्यता को और अधिक खूबसूरती दी हैं...
bahut khoob
dil ke baat sapno mia,sapno ke baat juba pr le aai ya subnam ke bude
lovely poem rise heart's sound honestly
लिख यार क्यों थम गए, रुक गए। बहुत खूब लिखा है जनाब आप तो महा कवि हो। लोकेंद्र जी भी लिख रहे हैं और आप क्यों रुक गए। लिखों इंतजार रहेगा।
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