07 March, 2009

"शबनम की बूँदें..."

सपना था यूँ पलकों पर
जैसे शबनम की बूँदे
हुआ सबेरा तो भ्रम टूटा
जैसे शबनम की बूँदे
दिन की घोर तपिश में पिघले
जैसे शबनम की बूँदे
आंखों से वो झर-झर जाए
जैसे शबनम की बूँदे
मन को वो व्याकुल कर जाए
जैसे शबनम की बूँदे
शाम को आख़िर मिली ताजगी
जैसे हों शबनम की बूँदें
आख़िर फिर से रात ये आई
नई उमंगें सपने लायी
फिर से सपना है पलकों पर
जैसे शबनम की बूँदें.!!

"अकेला चला था..."

अकेला चला था
यूँ तनहा चला था
मंजिल को आखिर
वो पाने चला था,
आँखों में सपने
दिल में उमंगें
लेकर वो राही
चलता चला था,
चालों में मस्ती
कदमों में थिरकन
मतवाला आखिर
वो बढ़ता चला था,
मैंने न देखा
तुने न देखा
लेकिन चला चल
चलता चला था,
मंजिल को आख़िर
वो पाने चला था,
अकेला चला था
यूँ तनहा चला था
मंजिल को आख़िर वो पाने.....!!