सपना था यूँ पलकों पर
जैसे शबनम की बूँदे
हुआ सबेरा तो भ्रम टूटा
जैसे शबनम की बूँदे
दिन की घोर तपिश में पिघले
जैसे शबनम की बूँदे
हुआ सबेरा तो भ्रम टूटा
जैसे शबनम की बूँदे
दिन की घोर तपिश में पिघले
जैसे शबनम की बूँदे
आंखों से वो झर-झर जाए
जैसे शबनम की बूँदे
मन को वो व्याकुल कर जाए
जैसे शबनम की बूँदे
शाम को आख़िर मिली ताजगी
जैसे हों शबनम की बूँदें
आख़िर फिर से रात ये आई
नई उमंगें सपने लायी
फिर से सपना है पलकों पर
जैसे शबनम की बूँदें.!!